हल्द्वानी(उत्तराखंड): होली में अभी कुछ वक़्त भले ही शेष बचा हो लेकिन कुमाऊँ में होली पौष माह के पहले रविवार से ही शुरू हो जाती है, देर शाम से रात तक कुमाऊ में बैठकी होली का दौर शुरू हो चुका है जहाँ शास्त्रीय रागों पर आधारित होली का रिवाज औऱ गायन चल रहा है,

सर्द रातो में चल रहा होली गायन:

कुमाउँनी सँस्कृति में बैठकी होली का अलग ही महत्व है, माना जाता है की 15वी शताब्दी से यहां होली गायन की शुरुआत हुई, चंद वंश के शासनकाल में यह चंपावत से शुरू हुई और धीरे धीरे सभी जगह फैल गयी, होली गायन गणेश जी के पूजन से शुरू होता है जो शिव पार्वती की आराधना के साथ साथ राधा कृष्ण की हसीं ठिठोली से सरोबार होता है, रागों पर आधारित खड़ी औऱ बैठकी होली मंदिरों और घरों में गायी जाती रही है, माना जाता है की दिसम्बर यानी पूस माह की रातें बेहद सर्द औऱ लम्बी होती हैं, जिनको ब्यतीत करने के लिए लोग रात भर बैठक होली गाते रहे हैं, हलद्वानी में भी आजकल कुछ इसी तरह का माहौल है, जहां सर्द रातो में हारमोनियम औऱ तबले की थाप पर रागों पर आधारित होगी की सुरीली महफ़िल जम रही हैं,

शास्त्रीय रागों पर आधारित होली का हो रहा गायन:

कुमाऊ में अधिकतर होली रागों पर आधारित हैं, यहाँ महिलाओं की होली हँसी ठिठोली पर आधारित है तो पुरुषों की होली तबले, चिमटे औऱ हारमोनियम की धुनों पर आधारित है, आजकल जिन रागों पर होली गायी जा रही है उनमें राग जंगलाक़ाफी,पीलू, सहाना, झिझोटी, धमार मुख्य हैं, कुमाऊ में गायी जाने वाली होली की विशेषता यह है की ज्यादतर होली ठेठ शास्त्रीय रागों पर आधारित हैं, पौष माह के शुरुआत से ही कुमाऊँ में होली का रंग लोगो पर चढ़ने लगा है जो होली के दिन तक रंगों में तब्दील हो जाएगा, यह होली गायन होली का प्रतीक ही नही बल्कि आपसी भाईचारे औऱ सँस्कृति के सरक्षंण के कदमो को भी आगे बढ़ा रही है,

शास्त्रीय रागों पर आधारित होली गायन…

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